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ससुराल की सूखी रोटी…

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मेरी किस्मत रंगी है काले
रंग में
दर्द ही है जीवन के हर
अंग में..
आँसुओं की लकीरें कभी
मिटती नहीं बल्कि
और गहरा जाती हैं
जब किसी की बातें मेरे
दिल को दुःखाती हैं..
बेवजह कैसे कोई अपमान
कर सकता है ?
आखिर कब तक कोई ये
कड़वा घूँट पी सकता है..
मुस्कुराने की हर वजह
मुझसे रूठ जाती है
होंठों की मुस्कान आँख का
आँसू बन जाती है..
चली जाऊंगी एक रोज
ये जहान छोंड़कर
मुड़ के ना देखूंगी ना आऊंगी
लौटकर..
चाहे कितने भी दर्द मिलें
सब सह लूंगी
ससुराल की सूखी रोटी का
भी मान रख लूंगी..
तकलीफें बर्दास्त के बाहर
हुईं तो मर ही जाऊंगी
पर मायके कभी लौटकर
ना आऊंगी..

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