शब्दों में नहीं तो खामोशी ही सही,
किसी ज़ुबां में तो तू निकल कर सामने आ,
कब तलक छुपता रहेगा तू राज़ अब दिल में,
खुल कर अब किसी सच सा तू निकल कर सामने आ,
खेल हैं कई और खिलौने भी बहुत हैं ज़माने में,
छोड़ कर बचपना तू अब हकीकत में निकल कर सामने आ॥
राही (अंजाना)