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सावन की बूंदों से

रिमझिम रिमझिम वर्षा से,
जब तन मन भीगा जाता है,
राग अलग सा आता है मन में,
और गीत नया बन जाता है I 

कोशिश करता है कोई शब्दों कि,
कोई मन ही मन गुनगुनाता है,
कोई लिए कलम और लिख डाले सब कुछ,
कोई भूल सा जाता है I 

सावन का मन भावन मौसम,
हर तन भीगा जाता है,
झींगुर, मेढक करते शोरगुल,
जो सावन गीत कहलाता है I 

हरियाली से मन खुश होता,
तन को मिलती शीत बयार,
ख़ुशी ऐसी मिलती सब को,
जैसे मिल गया हो बिछड़ा यार I 

गाड़ गधेरे, नौले धारे सब,
पानी से भर जाते है,
नदिया करती कल कल,
और पंछी सुर में गाते है I 

“सावन की  बूदों” का रस,
तन पर जब पड जाता है,
रोम रोम खिल जाता है सबका,
स्वर्ग यही मिल जाता है I

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