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सुनकर कांव कव्वे की

मुहल्ले में खड़े टावर में
सुनकर कांव कव्वे की,
सभी यह सोच कर खुश हैं
अब मेहमान आयेगा।
मगर वह पाहुना आयेगा
किसके घर किसी को भी
पता कुछ है नहीं
केवल भरोसा है कि आयेगा।
प्रियसी सोचती है आज उसका
प्रिय आएगा,
वृद्ध माँ सोचती है आज
उसका पुत्र आयेगा।
पत्नी सोचती है
दूर सीमा में डटा पति आज
डेढ़ महीने के लिए
छुट्टी में आयेगा।
बच्चे खुशी से सोचते हैं
जो भी आयेगा,
कुरकुरे, चॉकलेट और
चिप्स लायेगा।
मुहल्ले में खड़े टावर में
सुनकर कांव कव्वे की,
सभी यह सोच कर खुश हैं
कि कोई आज आयेगा।
– डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड।

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