सोंधी-सोंधी गाँव की यादें
चौपाटी पर परधानी की बातें
पके-पके से स्वर्णिम धान
गाँव के बूढ़े, बाल, किसान
सब आते हैं मुझको याद
गोरी के गोरे-गोरे गाल
जिन पर हँसकर झूले लट
ना भूला मैं वह पनघट
जहाँ भरा करती थी पानी
जोरू, बहना और बूढ़ी नानी
माँ की वह चूल्हे की रोटी
सरसों का साग और गुण मीठी-मीठी
माँ पोंछ के आँचल से तब देती
लगी राख जो रोटी में होती
घी की मोटी परत लगाती
दूध में रोटी मसल खिलाती
बाबा की पगडण्डी और
नहरों की वो तैराकी
आज बड़ा ही याद आये
गाँव के छूट गये जो साथी….!!