मनोरम रात है
बिखरी हुई है चांदनी
तुम्हारी मुस्कुराहट सी
दिखाई दे रही है चांदनी।
जिस तरह चाँद खिलता है
कभी कुछ दिन महीने में,
उसी की भांति तुम भी हो
जो हंसते हो महीने में,
देता है जब मालिक कभी
वेतन महीने में।
मनोरम रात है
बिखरी हुई है चांदनी
तुम्हारी मुस्कुराहट सी
दिखाई दे रही है चांदनी।
जिस तरह चाँद खिलता है
कभी कुछ दिन महीने में,
उसी की भांति तुम भी हो
जो हंसते हो महीने में,
देता है जब मालिक कभी
वेतन महीने में।