हंसते हो महीने में

मनोरम रात है
बिखरी हुई है चांदनी
तुम्हारी मुस्कुराहट सी
दिखाई दे रही है चांदनी।
जिस तरह चाँद खिलता है
कभी कुछ दिन महीने में,
उसी की भांति तुम भी हो
जो हंसते हो महीने में,
देता है जब मालिक कभी
वेतन महीने में।

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Responses

  1. वाह क्या बात है, प्रकृति की चमक को पगार मिलने की चमक से जोड़ा है वाह

  2. बहुत ही सुन्दर कविता है सतीश जी ” जिस तरह चांद खिलता है,कभी कुछ दिन महीने में, उसी की भांति तुम भी हो । जो हंसते हो महीने में “।
    श्रृंगार रस से परिपूर्ण अति सुंदर कविता ।

    1. सादर अभिवादन। इस सुंदर और लाजवाब समीक्षा हेतु हार्दिक धन्यवाद गीता जी। आपकी समीक्षा प्रेरणादायी है। जय हो

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