Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
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जो आत्मनिर्भर है
1 जो आत्मनिर्भर है, उन्हें आत्मसम्मान की शिक्षा दे रही हैं क्यूँ हमारी सरकार? मजदुर अपने बलबूते पर ही जिन्दगी जीते, ये जाने ले हमारी…
दोस्ती से ज्यादा
hello friends, कहने को तो प्रतिलिपि पर ये दूसरी कहानी है मेरी लेकिन सही मायनो मे ये मेरी पहली कहानी है क्योकि ये मेरे दिल…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
वाह क्या बात है, प्रकृति की चमक को पगार मिलने की चमक से जोड़ा है वाह
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूब, अति उम्दा
सादर धन्यवाद जी
✍👌🤔🙂
बहुत बहुत धन्यवाद जी
बहुत ही सुन्दर कविता है सतीश जी ” जिस तरह चांद खिलता है,कभी कुछ दिन महीने में, उसी की भांति तुम भी हो । जो हंसते हो महीने में “।
श्रृंगार रस से परिपूर्ण अति सुंदर कविता ।
सादर अभिवादन। इस सुंदर और लाजवाब समीक्षा हेतु हार्दिक धन्यवाद गीता जी। आपकी समीक्षा प्रेरणादायी है। जय हो
बहुत उम्दा पंक्तियां
सादर धन्यवाद प्रज्ञा जी
अतिसुंदर
सुन्दर कविता