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हरित है वसन

अम्बर झुका हुआ है
और वसुंधरा है बसंती
कोपल की तरह प्रस्फुटित हो रहा है मन
हर शाख पर खिल रहा है
सुमन ।
हर पत्ता बूटा भीगा है लतपत है
उपवन
वृन्त से पृथक हो
झूमता है मन-गगन
प्राणवायु भर रही है
लहरों की छुअन
गीत क्षुभ्ध हैं और
हरित है वसन

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