हरिरूपम

हरिरूपम


 

 

उठ जाग अलौकिक ये प्रभात,
अम्बर में किरणों का प्रकाश,
जो भेद सके कोई इनकी जात,
तोह करे समुच्चय मानव की बात ।

विष-व्यंग टीस के सहा चला,
मलमार्ग में देह को गला-गला,
क्या अधिक थी ये भी मांग भला,
उदयाचल रूपी भाल सदा ?

हरिरूपम ना कर खेद प्रकट,
जनतंत्र निराला खेल विकट,
सह प्रमुदित निर्भय आन प्रथम,
स्वाधीन परम-तत्व, प्रमोद चरम,

पृथ्वी, जल और आकाश,
हर रूप स्वयम, हरी निवास,
जो भेद सके कोई इनकी जात,
तोह करे समुच्चय मानव की बात ।

– Piyush nirwan

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