हालात दुख देते हैं।
हां नहीं निभा पाया मैं वो वादें,
तुम्हें खुश रखने के वो इरादे,
याद है मुझे।
बहुत हालातों से की मैंने बंदगी,
मगर दुश्मन है ये जिंदगी!
जो चाहूं, वो कर ना पाऊं,
टूटी पतंग सा पुनः गिर जाऊं।
बेशर्मी से शर्मिंदा हूं,
लाचार सा मगर,जिंदा हूं।
मतलबी ,फरेबी, कुछ भी कहो
जहन को मेरे कुरेदती रहो
मैं हिमालय सा कठोर,
लड़ता रहूंगा, तकलीफों से,
जिंदगी के सलिको से।
और अभी भी मन में ,
पली है मेरे ,एक उमंग
तुम्हें खुश देखने की,
मिलकर साथ चलने की।
———मोहन सिंह मानुष