Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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कालचक्र मौत का
पाबंदियों की धज्जियां उङाते, सीधे-सीधे संक्रमण को आमंत्रण देने निकल पङे । गजब की परिस्थितिया, चारों तरफ मंडराते मौत के बीच खुद को चुनौती देने…
दोस्ती से ज्यादा
hello friends, कहने को तो प्रतिलिपि पर ये दूसरी कहानी है मेरी लेकिन सही मायनो मे ये मेरी पहली कहानी है क्योकि ये मेरे दिल…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
नरासुर
भयावह हो,मासूम हो?कैसा है चेहरा तुम्हारा? घूमते हो बीच हमारे, फिर भी ना जाना हमारा, नज़रें तुम्हारी अनजानी सी, अनदेखी, ना पहचानी सी, ना जाने…
माँ मेरी
तुम्हारे हाथ का हर एक छाला, चुभा जाता है इस दिल में एक भाला, हर एक रेखा जो तुम्हारी पेशानी पर है, एक दास्तां बयां…
वाह
बहुत बहुत धन्यवाद