एकता के सूत्र में विविधता को पिङोती, जनमानस की भाषा है जो
देवनागरी लिपि में गुथी हुई,अपनी राजभाषा रूप धर आई है जो।
हर जन के दिलों में उमंग सी बहती हुई
अभिलाषा सी हमारे मन में है बसती हुई
हर हिन्दुस्तानी के स्वाभिमान की है आधार वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।
अगर सम्मान इस जग में पाना है हमें
हिन्दी भाषी होने का अभिमान लाना होगा हमें
तरक्की के सफ़र में साथ निभाती है वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।
हिन्दी हमारी मातृभाषा , गुमान है इसपे हमें
इसके ही बदौलत, पूरे करने हैं अरमान हमें
हर मन में जगे स्वप्न को करती है साकार वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो। माँ की ममता सी आत्मियता की धार बहती है जिसमें
ममत्व का धर रूप , पर ढाल बन जो बसती है हममें
विविई रूपों में सुशोभित,सादगी की जीवंत प्रतिमान वो
हिन्दी हमारी मातृभाषा, राजभाषा रूप धर आई है जो।