अभी ज़िन्दगी की किताब के चन्द पन्नों को पटल कर देखा है।
अपने बचपन को जैसे सरसरी निगाहों से गुजरते देखा है,
यूँ तो खुशियों के पायदान के पृष्ठ पर आज पैर हैं हमारे,
मगर हमने भी दुखों के हाशियों पर खड़े रहकर देखा है॥
राही (अंजाना)
अभी ज़िन्दगी की किताब के चन्द पन्नों को पटल कर देखा है।
अपने बचपन को जैसे सरसरी निगाहों से गुजरते देखा है,
यूँ तो खुशियों के पायदान के पृष्ठ पर आज पैर हैं हमारे,
मगर हमने भी दुखों के हाशियों पर खड़े रहकर देखा है॥
राही (अंजाना)