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🌹🌹 वो पूस की रात 🌹🌹

🌹🌹कभी ना भूलेगी वो 🌹🌹
पूस की रात…….

ठंडी सर्द हवाओं और
बारिश की बूंदों के साथ……
⚘⚘⚘
मैं और मेरी तन्हाई
बस दो ही थे।
⚘⚘⚘
उस दिन वो
बारिश की नर्मी
और चादर की
सिलवट वैसी ही थी
जैसी मैनें छोड़ी थी …..
⚘⚘⚘
मौसम कितना भीगा सा था
उस पूस की रात में
बारिश की बूंदों ने
मन के सारे घावों
पर मरहम लगा दिया था…….
⚘⚘⚘
मैं और मेरी तन्हाई बस
डूबने वाले ही थे
तुम्हारी यादों के
समंदर में………
⚘⚘⚘
अचानक मैंने देखा कि
एक बुलबुल काफी
भीगी हुई कांप रही थी
बारिश में भीग गई थी शायद…….
⚘⚘⚘
मुझे ऐसे देख रही थी
मानो मुझसे कह रही हो
मुझे आज यहीं रहने दो
एक रात का आसरा दे दो……
⚘⚘⚘
मैं एकटक उसी को
देखती रही ।
सुबह जब आंख खुली
तो देखा धूप बारिश की बूंदों पर
चमक रही थी …..
⚘⚘⚘⚘⚘
बारिश बंद थी ,
वह बुलबुल भी जा चुकी थी
शायद मेरे उठने से पहले ही
चली गई थी वो……..
⚘⚘⚘
लेकिन उसका एक
पंख पड़ा था
शायद मुझे एक रात
का नजराना या निशानी दे गई थी …….
⚘⚘⚘
उस पंख को
जब मैंने उठाया तो
लिखा था कि ‘फिर आऊंगी’……🦜🦜🦜
⚘⚘⚘
आज फिर आ गयी ‘पूस की रात’
मुझे फिर से उस बुलबुल का
इन्तज़ार है……
⚘⚘⚘
मुझे कभी ना भूलेगी
वो बुलबुल वो बारिश और
‘पूस की रात’…………….. 🧤

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