वह
वह आसमान में सीढियां लगाए चढ़ा जा रहा है
जो पीछे था आगे बढ़ा जा रहा है
देखता जा रहा है वह सपने पे सपने
यथार्थ के बल ने टेके हैं घुटने
वह हरी दूब है
कहीं भी उग सकता है
उखाड़ कर फेक देने के बाद
जहाँ भी फेका जाएगा
उग जाएगा
जिएगा खुद
औरों को ज़िलायेगा
हरापन ही फैलाएगा
बसंत ही लाएगा
वह जीत है
लेकिन
हार को भी गले लगाएगा
वह गीत है
दुःख में भी गाया जाएगा
और सुख में भी गाया जाएगा
वह प्रेम है
प्रेम ही फैलायेगा
नफ़रत के खर पतवारों को जलाएगा
वह फ़ैला हुआ है
आस पास भी
और दूर भी
वह संगीत है
वह तो बजेगा ही
कोई विकल्प नहीं है
उसका संकल्प यही है
उसका संकल्प सही है ।
तेज
वह प्रेम है
प्रेम ही फैलायेगा
नफ़रत के खर पतवारों को जलाएगा very nice
thanks a lot