मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूँ
मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूँ लिख – लिख कर मैं कागज नहीं अन्तर की रिक्तता को भरता हूँ रिक्त स्थान कुछ ऐसे हैं……
मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूँ लिख – लिख कर मैं कागज नहीं अन्तर की रिक्तता को भरता हूँ रिक्त स्थान कुछ ऐसे हैं……
मेरे मोहल्ले में न मंदिर बनाओ … न मस्ज़िद बनाओ यदि बनाना ही है तो एक स्कूल बनाओ मेरे मोहल्ले में न गीता का…
रोशनियाँ उसका पीछा करती रहीं और वह अंधेरों में छिपता रहा तन्हाइयों में खोता गया और सूरज से आँख मिलाने से डरता रहा दिन दिन…
मोहब्बत की गवाही देने लगती हैं धड़कने सुलझाने से सुलझ जाती है सब उलझने चाँद को पाने की हिम्मत आने लगती है ज़िंदगी में आती…
शांति ओढ़ लेना प्रतिरोध छोड़ देना ज़रूरी नहीं कायरता ही हो हो सकता है आने वाले संघर्ष की तैयारी हो बात बात में ताने देना…
जापान से बुलेट ट्रेन लाने की ज़रूरत नहीं है बुलेट ट्रेन हम भी बना सकते हैं और चला सकते हैं अगर जापान से कुछ लाना…
टेक्नोलॉजी कैसे आएगी ——––—-/–/——-// टेकनोलॉजी कैसे आएगी इस देश में जब तर्क को आस्था के डिब्बे में बंद कर दिया गया हो … जब विज्ञान…
जो समाज में समता का समर्थक है जो देश का विकास चाहता है जो अंधकार की जगह प्रकाश चाहता है जो अंध विश्वास ,पाखंड ,भेदभाव…
यह जापान है ——————- यह हिंदुस्तान नहीं ,बाबू … जापान है जहाँ गुरु ग्राम और घंटा घड़ियाल नहीं विज्ञान है यहाँ आप आज़ाद है अपने…
वो कनेक्ट होना चाहता है पूरी दुनिया से वर्चुअली लेकिंन अपनी रियल दुनिया के लिए … उसको फुरसत नही फेस बुक पर 5000 मित्र है…
अन्याय इस लिए नही हैं कि वह बहुत शक्तिशाली है और उसका पलड़ा भारी है वह हर जगह छाया है… उसने अपना घर बसाया है…
ज़िंदगी में ऐसे काज करो कि ज़िंदगी पे थोड़ा नाज़ करो ज़िंदगी को रिलैक्स करो ज़िंदगी का हेड मसाज़ करो फिर … ज़िंदगी से कुछ…
जब कोई धर्म साज़िशों का पुलिंदा बन जाता है तब धर्म केवल धंधा बन जाता है शोषण और लूटपाट ही दलालों का एजेंडा होता है…
एक फूल के लिए कितना मुश्किल होता है कि वह अपनी पंखुड़ियों को तूफानों से बचा ले छिटकने न दें … पराग कणों को बिखरने…
मैं और तुम साथ साथ बड़े हुए दोनों साथ- साथ अपने पैरों पर खड़े हुए तुम्हारी शाखाएं बढ़ने लगीं पत्तियां बनने लगीं दोनों एक साथ…
अपनी छटपटाहटों को ही देता हूँ मन के जज़्बातों को डायरी में उतार लेता हूँ ये छटपटाहटें सिर्फ मेरी अपनी ही नहीं औरों की छटपटाहटों…
ये बात अफवाह सी लगती है कि ,सच्चा प्रेम कहीं मिला भीड़ में कहीं इंसान दिखा यह बात अफवाह सी लगती है कहीं ज्ञान का…
शाम का समय सूरज विश्राम करने को तत्पर दिन पर तपने के बाद सारी दुनिया तकने के बाद अपूर्ण ख्वहिशे दिन भर की मन में…
हरी जाली से देखने पर सूखे पेंड भी हरे लगते हैं नज़र का फ़ेर हो जाए तो पिलपिले भी खरे लगते है । तेज
एक युद्ध में कितने युद्ध छिपे होते हैं हर बात में कितने किंतु छिपे होते हैं नींव का पत्थर दिखाई नहीं पड़ता अक्सर रेल चलती…
मोहब्बत की नज़्मों को फिर से गाया जाए अपनी आज़ादी को थोड़ा और बढ़ाया जाए हक़ मिला नहीं बेआवाज़ों को आज तक हक़ लेना है…
Poetry ———— Poetry is Neither frustration Nor speculation Poetry creates a situation where we get solution Poetry is an inspiration To live and let live…
पवित्र नारी ही क्यों हो पुरुष की पवित्रता का क्या मोल नहीं ? पतिव्रता नारी ही क्यों पुरुष के पत्नी व्रत का क्या कोई तोल…
सिर्फ संकेतो और प्रतीकों से कुछ न होगा सिर्फ परंपरागत तरीक़ों से कुछ न होगा सिर्फ नारे बाज़ी से भी कुछ न होगा सिर्फ आज़ादी…
सुपर डेंस फेज में जब कण होते हैं तब बिस्फोट के कई कारण होते हैं बिग बैंग भी तभी होता है और अणु, परमाणु ,न्यूट्रॉन…
चलो थोड़ा जादू करते हैं जनता के दिल को छूती हुई एक कविता लिखते हैं झोपड़ियों में पल रही भूख से टकराते हैं छोटे छोटे…
ज़्यादा दिमाग़ न आज लगाया जाए सिर्फ मन में ज़मी मैल को बहाया जाए धर्म और परंपरा की ऐसी भी न कट्टरता हो कि होलिका…
जिन बाज़ारों में बड़ी रौनक़ है कल सन्नाटा उनमे छाएगा बंद होनी हैं दुकाने सब ऐसा बाज़ार नहीं रह पाएगा नफ़रत के अंधेरों में जो…
अच्छी कविताएँ लिखना उतना महत्वपूर्ण नही है उन्हें अच्छे से प्रमोट होना बहुत ज़रूरी है ऑफिस में काम भी उतना आवश्यक नहीं आपका गुड बुक्स…
Poetry is Neither frustration Nor speculation Poetry creates a situation where we get solution Poetry is an inspiration To live and let live Poetry is…
वह आसमान में सीढियां लगाए चढ़ा जा रहा है जो पीछे था आगे बढ़ा जा रहा है देखता जा रहा है वह सपने पे सपने…
वह अदृश्य गंध अनाम सी अपरिभाषित सी मन में बसी हुई जानी पहचानी सी जिसकी खोज ज़ारी है कल्पना के कितने ही क्षण जी उठते…
यदि जड़ें ऊपर हो और तने नीचे तो न जड़ें गहराई पा सकती हैं और न तने का ही विकास होता है यदि जहां खिड़की…
मेरे बाहर के यूनिवर्स को और मेरे अंदर के यूनिवर्स को मेरे अंतर्द्वंद को और बहिर्द्वंद को कविताएँ तराज़ू की तरह दोनों पलड़ों पर बिठाए…
कुछ समीकरण पारस्परिक खींचतान झूंठी प्रतिस्पर्धा ईर्ष्या ,द्वेष अहंकार सृजन और विसर्जन व्यक्तित्वों का टकराव झूठी अफवाहें सूनी निगाहें आत्मिक वेदना कम होती चेतना शीत…
कुछ समीकरण पारस्परिक खींचतान झूंठी प्रतिस्पर्धा ईर्ष्या ,द्वेष अहंकार सृजन और विसर्जन व्यक्तित्वों का टकराव झूठी अफवाहें सूनी निगाहें आत्मिक वेदना कम होती चेतना शीत…
बेड़ियां जो पैरों में उसे घुंघरू बना लें आओ ज़िंदगी का मज़ा लें नाच ,गा लें औरों को नचा दें ज़िंदगी को खुशियों से सज़ा…
शोषक और शोषित दो समांतर रेखाओं की तरह हैं जिनका कभी मिलन नहीं होता इसलिए शोषण का कभी अंत नहीं होता शोषक चाहे अफ्रीका का…
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