डरता हूं
बढती हुई कट्टर हिंदुओं की अराजकता पर कुछ लाइनें
अब बाहर निकलने से भी मैं डरता हूं
अपनी गोल टोपी पहनने से डरता हूं
कभी कहीं कोई गाय दिखाई दे तो
झुका लेता हूं दूर से ही सर अपना
मैं अपना सर कट जाने के डरता हूं
महंगी दाल, शक्कर के जमानें में भी
अब सस्ता मांस मैं खाने से डरता हूं
बाहर का हूं या इस देश का समझ नहीं आता
अब भारत को अपना देश कहने से डरता हूं
Nice
thanks
अच्छी कविता
thank u