बदरंगा इश्क़

Note : इक प्रेमिका इश्क़ मैं धोका खाये जज़्बातों को व्यक्त करती हुई ।


बदरंगा इश्क़


रंगना था तेरे रंग में,

बदरंगा करके छोड़ गए,

सदियो के उस वादे को,

पल भर में खट्ट से तोड़ गए ,

जब आये थे अपना बनाने,

तब लफ़्ज़ों का पिटारा रहा,

उन चिकनी-चुपड़ी बातों ने,

मुझको अपना सितारा कहा ,

वोह डेढ़ चाल शतरंज की थी,

इतना तोह मैंने समझ लिया,

पर न जाने कब इस रानी को,

इक प्यादे ने यूं झपट लिया ,

वो कहती मेरी सखी-सहेली,

न पड फुसलाती चालों में,

वो तन्हाई को गोद चलेगा,

नोंच के तेरे गालों पे,

बेपरवाही ज़ेहन में भर के,

सलाहों से मुख मोड़ लिया,

रंगना था तेरे रंग में,

बदरंगा करके छोड़ दिया ,

वो रात फ़ोन पे बतलाना,

वो बाल मेरे यूं सहलाना,

वो नमी भरी इन आँखों को,

वो चूम-चूम के बहलाना,

अब पलक बसेरा आँसू का,

साँसों में सिसकी थमी रही,

सब न्यौछावर कर बैठी मै,

नाजाने कैसी कमी रही,

जो बात शुरू थी जज़्बातों से,

वो ठरक पे आके सिमट गयी,

सौ पन्नों की प्रेम कहानी,

चंद लफ़्ज़ों में ही निपट गयी ।

– पीयूष निर्वाण

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