स्मृति::इंजी. आनंद सागर

**के जब तुम लौट कर आओ::स्मृति**

 

हौसला टूट चुका है, अब उम्मीद कहीं जख्मी बेजान मिले शायद,

जब तुम लौट कर आओ तो सब वीरान मिले शायदll

 

 

वो बरगद का पेड़ जहां दोनों छुपकर मिला करते थे,

वो बाग जहां सब फूल तेरी हंसी से खिला करते थे,

वो खिड़की जहां से छुपकर तुम मुझे अक्सर देखा करती थी,

वो गलियां जो हम दोनों की ऐसी शोख दिली पर मरती थीं,

वो बरगद,वो गलियां, वो बाग बियाबान मिले शायद,

के जब तुम लौट कर आओ……………l

 

 

खेत-खलिहान तक तुमको बंजर मिले,

मेरी दुनिया का बर्बाद मंजर मिले,

ख्वाबों के लहू और लाशें मिलें,,

और तुम्हारी जफाओं का खंजर मिले,

तबाहियों का ऐसा पुख्ता निशान मिले शायद,

के जब तुम लौट कर आओ…………ll

 

 

यहां जो हंसता मुस्कुराता मेरा आशियाना था,

जिसके हर ज़र्रे में बस तुम्हारा ठिकाना था,

ये शहर जो मेरे साथ मुस्कुराया करता था,

मेरे साथ तुम्हारे बाजुओं में बिखर जाया करता था,

वहां उजड़ा हुआ शहर, खंडहर सा इक मकान मिले शायद,

के जब तुम लौट कर आओ……  I

 

 

तुम आओ तो शायद ना मिलें ये बाग बहारें,

ये शहर मिले ना मिलें मेरे घर की दीवारें,

तुम बहार थी मैं फूल था मैं अब नहीं खिलूं,

के जब तुम लौट कर आओ तो शायद मैं नहीं मिलूं,

मगर कंधे पर अपनी लाश ढोता एक इंसान मिले शायद,

के जब तुम लौट कर आओ…………ll

 

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          -Er Anand Sagar Pandey

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