मैं ही रहूँगा…..
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तेरे दिल में याद बनकर समा जाऊँगा
तेरी आँखों में नशा बनकर छा जाऊँगा
कशिश की सरहद से दूर ना जा पाओग
मैं खुशबू बनकर एहसास की———–
———–तेरी साँसों में घुल जाऊँगा
ये तो सांसारिक बातेें हैं, कि…..
मैं तुम्हारा रहा नहीं कभी–
लेकिन—
ख़्वाबों–ख़्यालों से छुड़ाओगे
तुम पीछा कैसे—-?
‘सोच’ की तस्वीर बनकर दिख जाऊँगा
तेरे इनकार की कोई वज़ह ना मिलेगी
तेरे दिल में,प्यार मेरा बेवज़ह ना दिखेगी
तेरी मुस्कुराहट की वज़ूद बनकर–
तेरे चेहरे पर खिल जाऊँगा—
देखोगी जब भी तुम आईने को–
तेरे चेहरे की अक़्स में मिल जाऊँगा
मेरे जीवन का आधार तुम हो
ज़िन्दा हूँ,कि–मेरा प्यार तुम हो
दुआओं में–इबादतों में तुम्हें देखता हूँ
आभास मेरे होने की–तुम्हे भी मिलेगी
खुली हवा में जब तुम आओगी–
खिलते फूल देखकर मुस्कुराओगी—
चहक उठेगा दिल तेरा खुशी के एहसास में
उस “एहसास” की एहसास में—–
मै ही रहूँगा…….मैं ही रहूँगा……..|
—–रंजित तिवारी “मुन्ना”
सुन्दर रचना