एक नज्म
मेरी एक नज्म, दूसरी नज्म पर हंसती है
तो कल वाली खुद पर इतराती है
आज वाली खुद पर नाज करती है
कभी वो वाली जो रात अचानक
बिस्तर से उठ कर एक कागज पर लिखकर
किताब मे रखी थी अपनी
याद दिलाती है , तो भूली हुई एक
नज्म नाराजगी जताती है
कभी-कभी एक-दूसरे से लड़ जाती है
मैं हू सबसे अच्छी , मैं हू चहीती
मुझ पर है वो निसार*
मैं चुप-चुप हंसती हू कुछ नही बोलती
जब थक जाती है तो अपने आप
करीने से लगकर गजल बन जाती है !
Very nice
nice
Good
सुन्दर रचना