तुम
तुम तो कहते थे कि जी नहीं पाओगे मेरे बिना अरसे बाद मिला तो सवाल किया उसने मैंने कहा आखरी साँस पर तेरे साथ का वादा किया था ना तू आया ना वो अखरी साँस आई। »
जरुरत से ज्यादा जुर्रत कर हिम्मत से ज्यादा हिमाकत कर। ख्वाब जितने भी हैं जिस्म में तेरे उन सबको रूह में शामिल कर। जरुरी नहीं सबको जिन्दा दिखे तू किसी के लिए मरने का भी हुनर जिन्दा रख। यूँ ही नहीं मिलते जजीरे इश्क के सबको साहिलों पर आकर डूबने का हुनर भी सिखा कर। »
मुझे यकीन है की इक रोज़ तेरा भी सवेरा होगा, अंधेरो का कोई साया ना होगा! इक रोज़ तेरा भी सब कुछ होगा, कुछ ना होने को कुछ ना होगा! इक रोज़ चाहा है जैसा वैसा ही होगा, अनचाहा कुछ भी ना होगा! मुझे यकीन है की इक रोज़ तुम्हे मेरे यकीन पर यकीन होगा! खूबसूरत सूरज का डूबना भी होता है क्योंकी सबको, उसके फिर से उगने पर यकीन होता है! »
अभी और बनना बाकि है, अभी और बिगड़ना बाकि है , जिन्दा है यहाँ कौन-कौन सबको ये साबित करना बाकि है, जीने के लिए खुद के अभी खुद का मरना बाकि है ! »
दफन होने से पहले, एक बार ये काम करके देखना! जो जुस्तजू हो, जीने की तो मुझपर भी मरकर देखना! आदत जो ना हो शिकायत करने की तो पास मेरे बैठकर देखना! चाहत जो ना हो भटकने की तो संग मेरे चलकर देखना! मैं आज तेरा ख्वाब हूँ, मुझे एक बार हकीकत बनाकर देखना! »
आँखों से बहता पानी कहाँ एक सा होता है कभी खुद के लिए रोता है, कभी खुदा के लिए रोता है ! कभी कुछ पा के रोता है , कभी कुछ खो के रोता है ! कभी किसी की यादो मे रोता है , कभी किसी को याद करके रोता है ! कभी खतों मे रोता है , कभी ख़ता करके रोता है ! कभी आँखो से पानी टपकाकर रोता है , कभी दिल मे छुपकर रोता है ! रोता है जब भी दर्द का अहसास कराकर रोता है ! »
बचपन के शहर मे जाने , क्यों ख़ाली से मकान पड़े है सयानेपन के हर जगह पर ऊँचे-ऊँचे बंगले खड़े है कुछ आधुनिकता की आड़ मे लूट गए कुछ को मजबूरियों न लूटा है महँगे खिलौनो की सौदेबाजी मे, बचपन को जाने किसने लूटा है! कहाँ गए जाने जो कागज की कश्ती बनाया करते थे, नन्हे-नन्हे हाथो से मिटटी के घर बनाया करते थे जो पत्थर के टुकड़ो से भी खेल बनाया करते थे ! कोई तो उनको ढूंढ के ला दो , कोई तो उनको खोजकर ला दो , मा... »
समझाऊँगी क्या मैं तुझको बतलाऊँगी क्या मैं तुझको ! कभी तो अपना जान तू मुझको कभी तो अपना मान तू मुझको ! बस इतना-सा वादा कर दे बस इतना-सा सच्चा कर दे ! मुझको तू अपने काबिल कर दे मुझको तू इतना कामिल कर दे ! »
क्यों मिली नहीं रहमत तेरी अब तक क्या मेरी कोई भूल तेरे दर मे गुनाह मुक़र्र हुई है ! »
क्यों खुदा तेरा दिल भी बंजर-सा हुआ क्या तेरा भी कोई अपना बेईमान-सा हुआ ! »
साथी मेरी न्यारी है मुझको सबसे प्यारी है राज ये मेरे रखती है किसी को नहीं दस्ती है हर वो बात ये सुनती है जो दुनिया को चुभती है दोस्ती ये ऐसी सच्ची है जो सबसे पक्की है ! »
चार दिन की थी जिंदगी एक दिन का था बचपन उसमे थोड़ा-सा कच्चा था, थोड़ा-सा अच्छा था लेकिन वो ही सबसे सच्चा था , क्योंकि जिन्दा था बैखोफ मैं उसमे चाहे रोता था माँ की गोद मे छुपके! दूसरे दिन की थी जवानी जिम्मेदारी ना थी कोई उसमे बस मस्ती की कंधो पर गठरी थी सारा दिन घूमता था यहाँ-वहाँ किसी मंजिल पर जाने की कहा मुझको जल्दी थी ! तीसरे दिन, मै ना जवान था ना बूढ़ा था बस ज़िम्मेदारियों का पुतला था हर कदम सोच-समझ... »
तेरे इश्क मे…….तेरे इश्क मे , तेरे इश्क मे बेबस हुए तेरे इश्क मे बेखुद हुए तेरे इश्क मे बेहद हुए दीवाने हम ! तेरे इश्क मे…….तेरे इश्क मे , तेरे इश्क के दरिया मे हम तेरे इश्क के सहरा मे हम तेरे इश्क के सावन मे हम देखो डूब गए ! तेरे इश्क मे…….तेरे इश्क मे , तेरे इश्क के कुंचो मे अब तेरे इश्क की गलियो मे अब तेरे इश्क के सायो मे अब मेरा बसेरा है ! तेरे इश्क मे…... »
मेरी एक नज्म, दूसरी नज्म पर हंसती है तो कल वाली खुद पर इतराती है आज वाली खुद पर नाज करती है कभी वो वाली जो रात अचानक बिस्तर से उठ कर एक कागज पर लिखकर किताब मे रखी थी अपनी याद दिलाती है , तो भूली हुई एक नज्म नाराजगी जताती है कभी-कभी एक-दूसरे से लड़ जाती है मैं हू सबसे अच्छी , मैं हू चहीती मुझ पर है वो निसार* मैं चुप-चुप हंसती हू कुछ नही बोलती जब थक जाती है तो अपने आप करीने से लगकर गजल बन जाती है ! »
शाखों से टूटकर पते पतझड़ की निशानी दे गए! कल थे शान जिन दरख्तों की आज कदमो तले रुंद गए ! साए देते थे जो मोसफिरों को धूप मे आज अपने सहारो को भी छोड़ गए ! दरख्तों का लिबास थे कल तक आज अपना लिहाज भी भूल गए ! पतझड़ आया है तो बहार भी आएगी नई बहार के साथ , नई कोंपले फिर आ जाएगी ! पतझड़ मे जो दरख्ते कहलाए है , फिर पेड कहलाएगे! »
तेरा दूर-दूर का रहना ले जाये मोर चैना तेरी रहा तकै है अंखिया ताने देती घर गालिया तेरी राह तकै हुए बरसो अब छोड़ भी कल परसो तेरी सोच मे बीती रैना मोर लोटा अब तू चैना तेरा दूर-दूर का रहना ले जाये मोर चैना ! कब तक रहु मैं ऐसे कब तक राहु मैं वैसे इक पल मे ये सोचू इक पल मे वो सोचू तू ज्यादा है छलिया या ज्यादा है मनबसिया तेरा दूर-दूर का रहना ले जाये मोर चैना ! कभी तुझ पे दिल हारु कभी तुझ से हारु छोड़ हार ... »
जाने क्यों नदिया सागर से मिल जाती है , मिलो का रास्ता तय कर सागर को मंजिल क्यों बनाती है ! पवित्र है, पावन है, निर्मल जल की धारा है, खारे पानी मे मिलना जाने क्यों इसे गवारा है ! हिमालय की बिटिया है ये , मेरी माँ मुझसे कहती थी रखती है दृढ़ निश्चय अपना चाहे चले जिस भी रास्ते पर सागर से मिल जाती है! सागर का अस्तित्व बचाने को अपना अस्तित्व मिटाती है ! जाने क्यों नदिया सागर मे मिल जाती है ! »
खोजते है बचपन अपना , ढूंढते है नादानी अपनी , कूड़े के ढ़ेर को समझते है कहानी अपनी ! देखकर मुझको वैसे तो दया सब दिखाते है, पर जब कोई गलती हो जाए, तो पढ़े-लिखे बाबू भी गालियां दे जाते है ! कोड़े का ढ़ेर किसी को पैदा नहीं करता , साहब हम भी किसी की ओलाद है सिर्फ गरीबी के नहीं मारे हम, हम आप सबकी ख़ामोशी के भी शिकार है ! इसलिए कोड़े के ढ़ेर मे बचपन खोज रहे है, गलतफहमी है की कूड़ा बीन रहे है ! »
ख्वाब छोटा-सा था, बस पूरा होने मे उम्र लग गईं! उसके घर का पता मालूम था , बस उसे ढूंढने मे उम्र लग गईं ! ख़त तो उसने भी लिखे थे, बस मेरा नाम लिखने मे उम्र लग गईं ! दूर तो ना थे हम एक-दूसरे से, बस नजदीकियों का अहसास होने मे उम्र लग गईं ! ख्वाब छोटा-सा था, बस पूरा होने मे उम्र लग गईं ! इंतजार तो उसे भी था मेरा, बस उसे इजहार करने मे उम्र लग गईं ! रोया तो वो भी था ऱज के मुझसे बिछड़कर, बस आँखों के पानी को... »
बाती की इक रोज ,दीए से लड़ाई हो गयी मगरूर हुई बाती खुद पर, लगी दीए पर भड़कने मैं जलकर खाक हो जाती हूँ, और तारीफे बटोरता है तू , नहीं जलूंगी तेरे साथ अब ओर तय कर लिया मैंने , तू ढूंढ ले कोई ओर अब नहीं रहना संग तेरे ! चुप-चाप सुनता हुआ दिया अब बोल उठा तू जलकर खाक हो जाती है तेरी कालस तो मैं ही समेटता हूँ तू जलती है जब-जब तेरी तपिस तो मैं ही सहता हूँ ! कैसे ढूंढ लू कोई ओर मुझे कोई और मिलेगा नहीं , तुझे... »
मैं मान लेती हूँ, की तुम्हे मेरी याद नहीं आती , पर वो महफ़िल-ए-चाय तो याद आती होगी ! वो शाम की रवानगी , वो हवा की दिवानगी, वो फूलो की मस्तांगी , याद न आती हो , पर वो चाय की चुस्की की आवाज तो याद आती होगी ! याद ना आती हो तुमको गूफ्तगू-ए-महफिल , पर निगाहों की शरारते तो याद आती होगी ! मैं मान लेती हूँ , की तुम्हे मेरी याद नहीं आती , पर वो महफिल-ए-चाय तो याद आती होगी ! हर शाम चाय के साथ अखबार पढ़ना , आद... »
खुदा ने भी क्या बेखुदी , बख्शी है , खुद को ही ख़ाक करने मे , हमने ख़ुशी समझी है ! ( निसार ) तुझसे इश्क क्या किया , गलतियों के बूत बन गए, लोग कहते है की , अब हम भी इंसान बन गए ! (निसार) दिल खो गया इश्क के बाजार मे , सब लूट गया इश्क के व्यापार मे , जपते है नाम तेरा सांसो के साथ मे , लोग कहते है बदली जात इस बेईमान ने ! (निसार) »
ना चैन है, ना सुकून है ये दिल को क्या फितूर है l करता है ये मनमानियां , करता है ये शैतानिया सुनता नहीं बेधड़क है ये दिल, जानिया धड़कता है जब ये सीने मे, मजा है फिर तभी जीने मे ना रिवाजो मे , ना समाजो मे उड़ता फिरे ये खयालो मे , कभी सजदे मे है, कभी शिकवे मे है , कभी किसी के हिस्से मे है ना चैन है , ना सुकून है ये दिल को क्या फितूर है ! »
नारी हूँ मै, नादान नहीं हूँ निस्छल हूँ , निर्लज नहीं हूँ ! पथ की उलझन सुलझाना चाहु पग के बंधन तोडना चाहु सिर्फ यही अपराध करु मै अपने मान की पहचान करु मै ! अभिमान को अपना मान बताए और मेरी पहचान सिया बतलाए जब हर घर सिया विराज रही है तब क्यू हर घर राम नही है ! जब मेरे प्रश्नो का तुम पर उत्तर नही है मेरे मन के बन्धनों का हल नहीं है तो फिर क्यू स्वयं को ज्ञानी बतलाए स्वयं को मेरा स्वामी बतलाए ! नारी हू... »
ख़्वाब देखती है आँखै मेरी भी उड़ना चाहती हु मै भी पढू , लिखू बनू अफसर मै भी आकाश मै उड़ता जहाज देखू मै जब भी साथ वो अपने मुझे ले जाता है पढ़ने , लिखने का जो तुम मुझको एक मौका दे दो है तो हक़ मेरा , पर तुम अपनी जायदाद समझकर देदो एक रोज अफसर बन तुमको भी जहाज मै बिठा आकाश की सैर कराऊँगी मै मुझे न सही मेरी, ख्वाहिश को अपना समझ लो बेटो को तो आजमा लिया सबने , अब मुझको भी अपनी अजमाइस का एक मौका दे दो ! »
ये अजूबा किसने कर दिया फक्त एक मुट्ठी मैं सारा हिन्द इकट्ठा कर दिया तीन ही रंगों मैं सारा हिन्द बया कर दिया केसरी है वीरो के , बलिदानो का प्रतीक जिन्होंने स्वय को समर्पित कर अपने लहू से तिलक कर हिन्द के माथे को चन्दन-सा महका दिया ! सफेद है उस सांति का प्रतीक जिसके लिये फिरती है दुनिया मारी -२ लेकिन हिन्द गोद को इससे शुशुभित कर दिया ! हरा रंग है उस खुशहाली का प्रतीक जब हिन्द की मिटटी को दुश्म... »
जय हिन्द का नारा फिर बुलंद करो टूटे आत्मसम्मान को फिर एक-सार करो चित की चेतना को फिर चिंतित करो आँखों के पानी को फिर लहु मै परिवर्तित करो अधरों की चुप्पी को फिर बाधित करो जय हिन्द का नारा फिर से बुलन्द करो भारत को इन हुक्कमो से फिर मुक्त करो भारत को नारी के सम्मान से फिर शुशुभित करो भारत को भारत वासीयो की एकता से एक करो उठो-२ ऐ देश भक्तो अपने जीवन को सफल करो ! »
अजीब है दुनिया अजीब बाजार है दुनिया जिंदगी का लिबास पहने मुर्दा है दुनिया ये रूह बेचकर रिवाज ख़रीदा करती है मन के अहसास जलाकर पथर पूजा करती है जात को अपनी पहचान बता , अपनी ओकात छुपाया करती है गाय को माता बताकर गुंडागर्दी , और नारी को पैर की जूती बताकर परुषार्थ सिद्ध करती है अजीब बाजार है दुनिया यहाँ सभी जिन्दा है, पर अभी मुर्दा है दुनिया ! »
मैं वो नहीं जो पास रहकर तुझे हँसाउगा मैं तो वो हूँ जो रहू या ना रहू लैकिन तेरी मुस्कुराहट की वजह कहलाऊँगा ! मैं वो नहीं जो उजालो मैं तेरा साया कहलाऊंगा मैं तो वो धुल हूँ जो अंधेरे से घबराकर तेरे माथे से टपके पसीने के सहारे तेरे पैरो से लिपट जाऊँगा ! मैं वो नहीं जो याद आकर तेरी आँखों से छलक जाऊँगा मैं तो वो हूँ जो ख्यालो की जमी पर उग कर तेरी जिंदगी को खुशहाल कर जाऊँगा ! मैं वो नहीं जो रीती – ... »
लो फिर याद आ गया , वो बचपन सुहाना वो झूठ का रोना , वो सच का आँखों सी आलू का टपकना वो बेबाकी सी उदझ्ना सबसे. वो अपने साये सी भी डरना वो बारिश की मस्ती, वो कागज की कस्ती वो रेत का घर, वो मिटी का खिलौना , वो यारो की यारी, वो यारो की नाराजगी वो नादानी, वो मासूम सी शैतानी वो स्कूल न जाने का बहाना वो टीचर को सताना लो फिर याद आ गया वो बचपन सुहाना काश भूल पति वो बड़कपन का जमाना »
jb mai ud nhi pata tha tb kha mai jinda tha aksar chutai-chutai nano sai aakash ko taka krta tha kya hai isam jo itna dur hai aksar ma sai puch krta tha hans kr bs itna khti aik jruri frk btana hai iska kam aj uda hu to jana hai kya hai iskai pas jinda hona or sans laiuai ka frk btana hai iska kam »