नया साल
ये नये साल का मौसम भी खुशगवार नही
ऐसा लगता है मुझे अब किसी से प्यार नही
कई सालो से मुझे ग़म बहुत सताते है
कई सालो से मेरे साथ में ग़मख्वार नही
जान दे दूँ उसे तोहफे में नये साल को मै
उससे मिलने के मगर कोई भी आसार नही
बदलते साल से तो ज़ख्म नही भरते है
और फिर मै भी पिघल जाऊं वो लाचार नही
बहुत जल्दी से गुजरता है यहाँ हर साल
और कदमों में मिरे पहली सी रफ्तार नही
खरीद लूँ मै ‘लकी’ इक खुशी तेरी खातिर
पर मेरे शहर खुशियों का वो बाज़ार नही
अति सुन्दर ग़ज़ल?
Bhut khub lucky bhai
वाह
Nice