Categories: हाइकु
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हाइकु
हथेली पर सपनों की घड़ियाँ साकार नहीं। नदी के पार रेत के बडे़ टीले हवा नाचती।
‘बाबू जी की टूटी कुर्सी’
बाबू जी की टूटी कुर्सी चरमर-चरमर करती है जब बैठो उस कुर्सी पर डाल की तरह लचकती है बाबू जी उस कुर्सी पर बैठ के…
सोना बाबू
सोना बाबू बड़े smart हो, लगते बड़े dashing हो | smile पर वो सोना के मरती थी, heart beat है उसकी यह सबसे कहती थी…
“ धूप की नदी “
लड़की ; पड़ी है : पसरी निगाहों के मरुस्थल में ………….धूप की नदी सी । लड़की का निर्वस्त्र शरीर सोने—सा चमकता है लोलुप निगाहों में…
मृगतृष्णा
रेत सी है अपनी ज़िन्दगी रेगिस्तान है ये दुनिया, रेत सी ढलती मचलती ज़िन्दगी कभी कुछ पैरों के निशान बनाती और फिर उसे स्वयं ही…
Aapko Kavita meri samaj se pare he…plz explain it also
वाह बहुत सुंदर रचना
Good
I’m also agree with ashmita