किसान कि वेदना

किसान की वेदना

खुले आसमान के तले
रोटी का निवाला लिए
ऑखो में बेरुखी
नाप रहे धरती की छाती
ना सोने के लिए हैं शीश महल
ना रहने को हैं राजमहल
किसान के लिए हैं एक विकल्प
करो या मरो धरती के आंचल में
सुनहरे सपनो के संग सोना
खेत से जीना खेत में मरना
लाठी के सहारे चलना
रस्सी के संग फॉसी चढ़ना
नहीं हैं आसान कुछ भी
किसान बनना सबके बस की नहीं
किसान के संग बदसलूकी करना
किसान के संग धोखा करना हैं
हर चीज पैसे से नहीं तौला जाता
भूखी रोटी किसान से ही मिलता
चलो एक कदम बढाये हम
किसान का हक दिलाये हम

महेश गुप्ता जौनपुरी
मोबाइल – ९९१८८४५८६४

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