करने को कुछ और “करम” अभी बाकी हैं

टूट चूका हूँ , चाह जीने की छोड़ चूका हूँ !
फिर भी ज़िंदा हूँ क्यूँकि साँसे कुछ “नम” अभी बाकी हैं …!

ना जाने कितने ही दर्द सह चुका !
ना जाने और कितने ही खाने को “ज़ख़्म” अभी बाकी है !

छोड़ के जा चुके हैं जो हमको !
“संग हैं हर पल मेरे ” मुझमें ये “भ्रम ” अभी बाकी है !

नाम-ए-पर्ची बहुत लम्बी है मेरे अपनों की !
बस इसी बात का मुझमें थोड़ा सा “अहम ” अभी बाकी है !

मेरा क्या है ! तू मेरे चाहने वालों को सलामत रखना …
ओ -खुदा ! अगर मेरे हिस्सें में थोड़ा-सा भी “रहम” बाकी है …!

ग़म को पीता हूँ , हँसकर जीता हूँ !
कर ले ज़िंदगी , जो भी करने को तेरे पास ” सितम ” अभी बाकी है !

सोचा कई बार की छोड़ दूँ ये दुनिया !
पर निभाने को…ऐ-नीरज… कई “धर्म ” अभी बाकी हैं

हिदायत-ऐ-नीरज …! ज़रा सोच-समझ के लगाना दिल ऐ-यारों
कि दिल के ज़ख़्मों के “मरहम” बनना अभी बाकी है… !!!

_______नीरज ” फ़ैज़ाबादी ”

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