रामलला
रामलला
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खत्म हुआ वनवास रामलला का
शुरू हुआ निर्माण भव्य मन्दिर का
पुत्र भाई तात नृप सखा का स्वरूप निभाते
तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो राम कहाते
मानवता प्रेम मित्रता सद्भाव का पाठ पढाते
मानव मूल्यों का जन-जन को अहसास कराते
एक स्वप्न फिर से आश तके है विश्वगुरू बनने का–
लोग अलग हैं, धर्म बिलग हैं, पर हममें एक अगन है
हो निर्माण उस मन्दिर का, करेंगे जिसमें राम रमण हैं
सबकुछ उनपे छोङ देते हैं सर पे हमारे रघुनन्दन हैं
मोहनी मूरत हो सबके उर में कहलाते जो श्यामवरण हैं
रामराज्य हो हर जनपद में,मूरत हो बस रामलला का—
सुमन आर्या
Your poem is very nice.
Thanks
Very nice
धन्यवाद धन्यवाद