दो सिक्के

ले दे के दो सिक्के ले कर चली थी बाजार में
इक उछालने में खो गया, एक को रख भूली कहीं पर

Related Articles

करार

किसी की जीत या किसी की हार का बाजार शोक नहीं मनाता। एक व्यापारी का पतन दूसरे व्यापारी के उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।…

यादें

बेवजह, बेसबब सी खुशी जाने क्यों थीं? चुपके से यादें मेरे दिल में समायीं थीं, अकेले नहीं, काफ़िला संग लाईं थीं, मेरे साथ दोस्ती निभाने…

Responses

  1. परमात्मा ने हमें दो सिक्के पूँजी के रूप में दी है। पहला यौ़वन और दूसरा आत्मज्ञान। एक को तो प्रदर्शन करते हुए गवा देते हैं और दूसरे को भुलाए हुए हीं जीवन बिता देते हैं।।
    क्या मैं ठीक हूँ ,वसुंधरा जी?
    बहुत खूब। जीवन दर्शन।।

+

New Report

Close