‘करवाचौथ का व्रत’
चाँद को देखा और छुप गई
अपनी चादर में प्रज्ञा
पीपल की टहनी को हटाकर
चाँद ने झाँका जब मुझको
मैं भोली फिर थोड़ा मुसकाई
मुझको जब आई लज्जा
करवाचौथ का व्रत रखकर मैं
चाँद को तकने बैठी हूँ
वो चाँद तो बिल्कुल फीका है
मेरा चाँद है सुन्दर सबसे ज्यादा
आज चाँद आएगा छत पर
अपने साथ चाँद मेरा लेकर
यही सोंचकर सोलह श्रृंगार कियें हैं
अब देर ना कर चंदा जल्दी आजा….
अतिसुंदर रचना
आभार आपका
अति सुंदर रचना
Thanks
बहुत सुंदर
Thanks
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