वाणी में मधुरिमा चाहिए
नजरों में मुहब्बत और
वाणी में मधुरिमा चाहिए
इंसान ने इंसानियत को
साथ रखना चाहिए।
साँस ईश्वर की अमानत है
समझना चाहिए,
साँस रहने तक उसे
नेकी निभानी चाहिए।
दूसरे की साँस में अवरोध
बिल्कुल भी न कर,
जा रही साँसों को मुख से
साँस देनी चाहिए।
देन हैं प्रकृति की ये
जीव सारे दोस्तो,
जीभ को देने मजा
हत्या न करनी चाहिए।
फर्क है मानव व दानव में
समझना चाहिए,
इंसान को इंसानियत की
हद में रहना चाहिए।
Very nice poem
वाणी में माधुर्य होना चाहिए और जीव हत्या पाप है, यही संदेश प्रस्तुत करती हुई कवी सतीश जी की बहुत सुंदर रचना
बहुत खूब सुंदर भाव
बहुत खूब