लेकिन जो हुआ गलत ही था
गणतंत्र पर ऐसा होना
हम सबकी ही नाकामी है
सबका पत्थर हो जाना
हम सबकी ही नादानी है।
न इधर झुके न उधर झुके
सूखी लकड़ी से अड़े रहे,
अलग रंग के झण्डे क्यों
ऐसे राहों पर खड़े रहे।
दुनिया हँसती है इन सब से
ऐसी बातें तो उचित नहीं
ऐसे उलझन को देख देश की
जनता सारी व्यथित रही।
चाहे कमियां जिसकी भी हों
लेकिन जो हुआ गलत ही था
कहना क्या है सुनना क्या है,
यह राष्ट्र पर्व पर गलत ही था।
नाम देश का ऐसे कैसे
ऊँचा होगा मनन करो,
कुछ भी हो मिलजुल कर सारे
भारत माँ को नमन करो।
चाहे कमियां जिसकी भी हों
लेकिन जो हुआ गलत ही था
कहना क्या है सुनना क्या है,
यह राष्ट्र पर्व पर गलत ही था।
*********राष्ट्र पर्व पर आंदोलन के नाम पर जो हुआ वह सचमुच गलत ही था। राष्ट्रीय पर्व पर जो ग़लत हुआ उस पर कवि की कलम से निकले उद्गार , राष्ट्र को संदेश देती हुई कवि सतीश जी की देश प्रेम से ओत प्रोत बेहतरीन रचना। बेहतर शिल्प और उत्कृष्ट कथ्य सहित उम्दा प्रस्तुति
वाह सर वाह
सुन्दर रचना
अतिसुंदर भाव
बिल्कुल सही