वहम
सोचता था हक़ से मांग सकता हू तुझसे कुछ भी
देखा तोह वोह हक़ तूने कब किसी और को दे दिया
जिस नाम को तबीर बना के घूमते थे
वोह हर किसी के साथ जुड़ गया
गम नहीं है तेरे बेवफाई का
बस खुद के भरोसे से भरोसा उठ गया
जिस्म से तेरे सिर्फ प्यार नहीं था
जो था वोह तू नहीं जान सकती कभी
खोया मैंने जो कभी मेरा ना था
खोया तूने जो सिर्फ तेरा ही था
सुन्दर पंक्तियां
बहुत खूब
Nice