Categories: शेर-ओ-शायरी
Related Articles
कविता :आओ जियें जिन्दगी ,बन्दगी के लिए
पता नहीं किस बात पर इतराता है आदमी कब समझेगा अर्थ ढाई आखर का आदमी भूल बैठा है आज वो निज कर्तव्य को खून क्यों…
खुद के सहारे बनो तुम
मौजो से भिड़े हो , पतवारें बनो तुम, खुद हीं अब खुद के, सहारे बनो तुम। किनारों पे चलना है , आसां बहुत पर, गिर…
पत्थरों की तरह आदतें हो गयीं
हम भी रोये नहीं मुद्दतें हो गयीं। पत्थरों की तरह आदतें हो गयीं। जबसे बेताज वह बादशाह बन गया, पगड़ियों पर बुरी नीयतें हो गयीं।…
आज देखो दुनिया क्या से क्या हो गयी
हंसी ख़ुशी कहीं ,गम की वादियों में खो गयी आज देखो दुनिया क्या से क्या हो गयी दूसरों की सफलता पर ,जो बजती थी तालियाँ…
चलता जा रहा है सुबह शाम आदमी
कहीं खो गया है आभासी दुनिया में आदमी झुंठलाने लगा है अपनी वास्तविकता को आदमी परहित को भूलकर स्वहित में लगा है आदमी मीठा बोलकर…
बहुत सुन्दर भाव
बहुत खूब