किसी नाजुक कली सी,
आंखें कुछ झुकी हुई शरमाई सी,
हौले हौले दबे पांव आई ही गई सर्दी सलोनी सी,
खिली हुई मखमली धूप में, आई किसी की याद सुहानी सी,
दबी दबी मुस्कुराहट, होठों पर छाई सी,
पता चला नहीं कब ढल गया दिन यूं ही,
आई ठिठुरन की रात लिए कुहासों की चादर सी,
सुबह धुंध का पहरा है, लगता बादलों का जमावड़ा सा,
ढकी है चादर धुंध की राहों में,
दूर-दूर तक कुछ भी नजर नहीं आता राहों में,
गर्म चाय की चुस्की दे रही थोड़ी गर्माहट सी,
अलाव के पास बैठना दे रहा सुकून सा,
हरी हरी घास पर ओस की बुंदे हैं चमक रही शीशे सी,
कांपते होठों ने तुमसे कुछ कहा,
रह गई वह बातें क्यों मेरी दबी सी