आजादी
लहू है बहता सड़कों में आक्रोश है कुम्हलता गलियों में लफ़्जों मे है क्यों नफ़रत का घर आग है फैली क्यों फिजाओं में रंगो में है क्यों बारूद भरा क्यों दीये अंधेरों में रोते है क्यों अजाने आज चीख रही है क्यों आज हम गोलियां बोते है ममतायें क्यों मायूस है आज बचपन आज बिलख रहा है आज क्यों जल रहे है घर भविष्य भारत का सुलग रहा है है अपने को आजाद कहने वाले जरा आंखे तो उठा, नजरें तो मिला कौन सी आजादी, किसकी आजादी... »