कश्मीरियत ! इन्सानियत !!
गलतियाँ तुमसे भी हुई है , गुनाह हमने भी किये है पत्थर तुमने फेंके , गोलियों के जख्म हमने भी दिए है । गोली से मरे या शहीद हुए पत्थर से; नसले-आदम का खून है आखिर , किसी का सुहाग ,किसी की राखी; किसी की छाती का सुकून है आखिर । कुछ पहल तो करो , हम दौड़े आने को तैयार बैठे है पत्थर की फूल उठाओ , हम बंदूके छोड़े आने को तैयार बैठे है । बंद करो नफ़रत की खेती , स्वर्ग को स्वर्ग ही रहने दो बहुत बोल चुके अल... »