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कल ही लिपटे थे दामन से

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

कल ही लिपटे थे दामन से
क्यूँ आज तिरंगा ओढ़ चले?
दो कदम चले थे साथ अभी
क्यों आज मुझे तुम छोड़ चले?

अब प्रेम गगरिया को अपनी मैं
आँखों से छलकाऊँगी,
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी।
मैं सूली पर चढ़वाऊँगी…

सूनी गलियां सूना आंगन
सूनी मेरी दुनिया साजन
‘परिणय’ के वो सुमधुर कंगन
कैसे मैं खनकाऊँगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

मीठे-मीठे सपने कल के
तुमने देखे हमने देखे
तेरे बिन ओ बोल रे साजन!
कैसे मैं जी पाऊंगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

मेरी बिंदिया मेरी पायल
तेरी राहें देख-देखकर
आंसू भी अब सूख गए हैं
तेरे नाम का लगा के काजल
कैसे मैं जी पाऊँगी।
तेरे हत्यारों को साजन सूली पर चढ़वाऊँगी…

कवयित्री:- प्रज्ञा शुक्ला ‘सीतापुर

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