बिजली चले जाने पर हम

May 28, 2019 in मुक्तक

बिजली चले जाने पर हम
रात चांद के तले बिताते हैं
क्रंक्रीट की छत पर
बैठ हम प्रकृति को कोसते हैं
हवाओं से मिन्नते करते
शहरों की छतों पर
तपती गरमी में नई सभ्यता रचते
दौड़ जाती हमारी आवेषों में बिजली
कंदराओं के मानव
आग की खोज में इतरा रहा था
एडिषन एक बल्ब में इतना परेषान था
हम उस बिजली के लिए शहरों में
तपते छतों में
इतिहास नहीं बने
हवाओं के बहने और पानी के बरसने में
हमने रूकावटे खड़ी कर दी
क्रंक्रीट की छतों और छज्जों में
कोसते हम प्रकृति को
और चांद देखता छतों पर
अपनी ओर बढते इंसानी कदमों पर
रोकने की सोच में डूबा
हम अपनी छतों पर सोचते
चांद पर क्या होगा?
मन में बिजली-सी कौंध जाती
छतों पर गरमी में तपते हम।

हुकूमत बदल जाओ

May 28, 2019 in मुक्तक

चंद वक्त ले लो
दुनिया भी बदल लो।
एक एहसान करो
तुम ही बदल जाओ
आजकल में
चीखों को सुनो
फिर सोचो
क्या तुम काबिल हो।
एक बार तुम घर में बैठ जाओ
देखों लोग कैसे बदलते हैं- जमाना।
बस तुम चले जाओ
देखो की कैसे बदलता है
सबका जीवन
तुम सब जिम्मेदार बनो
तो जानो की
कैसे बदलता है
हुकूमत की सत्ता
देखो कैसे बनते लोग
तख्त तुम उलट जाओ
फिर देखो बदलती
नई तस्वीर।
जिंदा है हम
तैयार हैं
बस तुम चले जाओ
अबकी बार हमें बैठाओ
हम बदल देंगे भारत।
अभिषेक कांत पाण्डे

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