मुक्तक

February 19, 2016 in शेर-ओ-शायरी

ख़्वाबे-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर
इन आँसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर
जब से चला हूँ मैं कहीं ठहरा न एक पल
राहें  भी  रो  पड़ीं  मेरी  तलाश  देखकर

©® लोकेश नदीश

मुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से

February 18, 2016 in ग़ज़ल

मुझको मिले हैं ज़ख्म जो बेहिस जहान से

फ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से

आँगन तेरी आँखों का, न हो जाये कहीं तर

डरता हूँ इसलिए मैं वफ़ा के बयान से

साहिल पे कुछ भी न था तेरी याद के सिवा

दरिया भी थम चुका था अश्क़ का उफ़ान से

नज़रों से मेरी नज़रें मिलाता है हर घड़ी

इकरार-ए-इश्क़ पर नहीं करता ज़ुबान से

कटती है ज़िन्दगी नदीश की कुछ इस तरह

हर लम्हाँ गुज़रता है नये इम्तिहान से

©® लोकेश नदीश

New Report

Close