PRARNA KOUL

दो कदम
June 15, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
मौसीकी चौराहे पर
रखकर
आँखें बंद कर
दो कदम रोज़ चलते हैं।
हाथ में बसता और सीने
में दिल रखकर
दो कदम रोज़ चलते हैं।
म़जिले डुडते डुडते
अकसर
नई राहे मिलती है
जब दीवानगी हटाकर
और कंधे पर मजबुरिया
रखकर
दो कदम रोज़ चलते हैं।
सरद हवाएँ और गरम
चाय की पयाली पीकर
साँस हाथ में लेकर
दो कदम रोज़ चलते हैं।
हैरानगी से भरी
“ज़िन्दगी
दुख से सींचती हुई
नज़दीकीया
खुद से दूर रखकर
दो कदम रोज़ चलते हैं।
हमारी जिंदगी अब हमें
क्या दिखाऐगी,
हम अनजान है,
कयोंकी हम तो सब
जानकर भी,
दो कदम रोज़ चलते हैं।
– प्रेरणा कौल।