by Priya

पापा आपकी बहुत याद आती हैं

June 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी हर बातें याद आती है
मेरा रूठना आपका मनाना
मानाने के लिए समझाना
मुझे रोते देख आपका उदास हो जाना
जब उन लम्हों का एहसास आता है
पापा आपका बहुत याद आता है

इस नासमझ को समझदार बनाना
अपनी गलतियों से सिखाना
हाथ पकड़ के खुद से चलाना
बेहतर एक बेहतर इंसान बनाना
जब आपका प्रयास याद आता है
पापा आपका बहुत याद आता है

ख्वाहिश होती है फिर
आपका हाथ पकड़ने की
अपनी गलतियों से सीखने की
ख्वाहिश होती है फिर रूठने की
आपकी वही नंदी गुड़िया बनने की

by Priya

सावन

June 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बदलती ऋतुओं से बदल रहा है मन
देखते इन नजारों को बाबरा हो रहा है तन
बादलों के टूटने की लड़ी आ रही है
वह तेज गड़गड़ाहट और चमकता आसमान
देखने की घड़ी आ रही है
बेसब्र हो रहा है दिल हमारा
कब मिलेगा देखने को सावन का
वह मनभावन दृश्य दोबारा
लगता है
वादियों का हो रहा है इशारा
सूर्य पर भी बादलों का पर्दा छा रहा
लगता है सावन करीब आ रहा
बदल रहा है मौसम बदल रहा है नजारा,
बहुत करीब आ रहा है सावन का सुहावन दृश्य प्यारा|

by Priya

अस्तित्व

June 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

“ख्वाहिश ना ऐसो आराम की,
चाहत ना दौलतो के शान की,
जरूरत तो है बस, खुद के पहचान की”
हर एक के लिए उसका शान
उसका अस्तित्व और पहचान
जो कर न सके
आप के अस्तित्व का सम्मान
उससे क्या बढ़ेगा आपका मान |
इसलिए इसका हमेशा रखो ध्यान
हमारा अस्तित्व ही हमारा सम्मान|

काव्या- प्रिया सिंह

by Priya

पहचान

June 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होना था तेरा, पर तेरा होना ही सिर्फ मेरा पहचान नहीं |
तू था जरूरी, पर एक जरुरी ख्वाब नहीं |
सिर्फ तेरा होना ही, मेरा समान नहीं |
ख्वाब मेरे ख्याल कई,
मकसद और मेरे मुकाम कई |
अगर अस्तित्ब का पहचान नहीं,
तो जीवन जीने का मान नहीं |
“न साथ दिया, न समान किया |
ये भी कोई, वफ़ा का नाम नहीं |
हम बेवफा कैसे हुए ?
अस्तित्ब और ईमान से बढ़ कर कोई शान नहीं |
जब तक खुद का “पहचान ” नहीं,
जीवन जीने का कोई मान नहीं |

by Priya

विषय – भारतवर्ष की बेटी

June 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

” मन की पीड़ा को आपके सामने ला रही हु अपने वाणी को प्रस्तुत करने जा रही हु ”
मैं रूकती नहीं उन इरादों से,
जो कैद कर सके मेरे पाउ ।
मैं भारत वर्ष की बेटी हूं ,
मेरे मन में बसते आजादी के भाव।
अपनी मन की पीड़ा को रख रही हूं,
रख रही हूं अपने दिल की आशाओं को।
मन की बात मन से समझ समझीये,
ऐसे न तोरीयेगा जैसे प तोड़े शिसाओ को।

by Priya

विषय- अब हम रूकेगे नही

June 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भारतवर्ष की बेटी हूं, समझ गई अपना अधिकार।
अब चाहोगे भी, तो न देंगे वाणियों को विराम।

New Report

Close