Nari ki akansha

मैं नन्ही प्यारी बच्ची थी , दिलो दिमाग से सच्ची थी।

दो लड़के मेरे साथी थे ,
मेरे दीपक के बाती थे।

पायल मै खनकाती थी,
संग उनके नाचती गाती थी।

संग उनका रास ही आता था , समाज का भय ना सताता था।

उमर बढ़ी जवानी अाई,
मॉ आकर मुझको समझाई।
“देख !अब तू जवान हुई ,
घर वालों का मान हुई ।”

तू लड़की वे लड़के हैं ,
जीवन में अभी कच्चे हैं।

“बंद करो ये आना जाना ,
बहुत हुआ ये नाच गाना ।”

बीता वक़्त बजी सेहनाई, समाज जा चुनरी ले अाई।

अब तुम जो मुझे समझते हो , क्या एक इच्छा पूरी करते हो।

बस उन दोनों से मिलवा दो,
फिर लुका-चुप्पी खिलवा दो ।

ना मुझे चाहिए सोना हीरा,
ना महलों का रैन बसैरा।

वे मेरे हीरे मोती थे ,
वे राजमहल वे कोठी थे ।

बस कर दो मेरी आकांक्षा पूरी, उनके बिना ये जीवन अधूरी

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