Soch

ये सोच ही है जो जुबान से शब्दों के रूप में कही जाती है
ये सोच ही है जो इंसान को एक दूसरे से अलग बनाती है।
ये सोच ही तो है जो लोगों में अपनापन लाती है
और यही सोच है जो अपनो को ही दूर ले जाती है

ये सोच भी ना समय के साथ बदल जाती है
कभी सही तो कभी गलत सोचने पर मजबूर कर जाती है
ये सोच मुश्किल्लो मे भी हिम्मत देती है
और यही सोच आसान चीज को भी पहाड़ जितना बड़ा और पेचीदा बना देती है

ये सोच ही है जो हार में भी जीत और जीत में भी हार ढूंढ लेती है
ये सोच ही है जो किसी की अच्छाई में भी उसकी बुराई ढूंढ लेती है
ये सोच ही है जो लड़की को घर में कैद कर देती है और यही वो सोच है जो उसे चाँद पर भी पहुँचाना चाहती है

सोचते तो सभी है.. कभी अपने लिए तो कभी लोगों को समझने के लिए
कभी अच्छा तो कभी बुरा
कभी दुसरो को समझाते है तो कभी दूसरों की गलत सोच को सही मानकर अपना ही गलत कर बैठते है
पर क्या हम ये सब जानते हुए भी इस गलत और सही सोच मे फर्क समझ पाते है? ये सोच !!!!

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