“मोहब्बत” #2Liner-14
क़यामत के रोज़ फ़रिश्तों ने, जब माँगा हमसे ज़िन्दगी का हिसाब; . ღღ__ख़ुदा, खुद मुस्कुरा के बोला, जाने दो, ‘मोहब्बत’ की है इसने!!……#अक्स
क़यामत के रोज़ फ़रिश्तों ने, जब माँगा हमसे ज़िन्दगी का हिसाब; . ღღ__ख़ुदा, खुद मुस्कुरा के बोला, जाने दो, ‘मोहब्बत’ की है इसने!!……#अक्स
ღღ__हमको भी अपनी बारी का, इंतज़ार रहेगा “अक्स”; . लोग कहते हैं तारीख़, खुद को दोहराती ज़रूर है !!………#अक्स
वो मुझमें बस गया है ‘साहब’, आईने में “अक्स” की मानिन्द; . ღღ___नज़र के सामने होकर भी, अक्सर सामने नहीं होता !!…….#अक्स
ღღ__मेरे मनाने से आखिर, क्यूँ लौट आएँगे वो भला; . वो छोड़ कर ही न जाते, अगर ऐतबार होता !!……..#अक्स
ღღ___कल मेरी ख़ामोशी का उसकी यादों से, झगड़ा हो गया “साहब”; . और शोर इतना हुआ दिल में, कि नींद जागती ही रात भर !!…..#अक्स
ღღ___अच्छे-बुरे का हिसाब, हम नहीं रखते “साहब” . हम तो बस वो करते हैं, जिसमें तुमको ख़ुशी मिले !!…….#अक्स
ღღ___सवाल तो बे-आवाज़ रातों का है “साहब”; . दिन तो गुज़र ही जाता है, ज़रूरतों के शोर में !!…….#अक्स
ღღ___मेरी आँखों में जो क़ैद है “साहब”, वो समुन्दर ही है शायद; . कि सूखता भी नहीं, बहता भी नहीं, बस भरा ही रहता है…
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