“रंग” #2Liner
ღღ__कुछ एक बे-रंग क़तरों में, बह गया ज़िन्दगी का हर एक रंग; . सबक क्या-क्या नहीं सीखे, “अक्स” हमने आंसुओं की जानिब से!!…#अक्स .
ღღ__कुछ एक बे-रंग क़तरों में, बह गया ज़िन्दगी का हर एक रंग; . सबक क्या-क्या नहीं सीखे, “अक्स” हमने आंसुओं की जानिब से!!…#अक्स .
ღღ__ना जाने आज इतना, क्यूँ याद आ रहे हो “साहब”; . तुझे भूलने की कोशिश, तो हमने की ही नहीं कभी!!….#अक्स .
ღღ__कुछ इस तरह भी करता है “साहब”, वो मेरे दर्द का इलाज; . कि पहले घाव देता है, फिर अपने आंसुओं से धोता है!!…..#अक्स
ღღ__कल शब मिला था इक चाँद, हाँ “साहब” चाँद ही रहा होगा; . मिले भी तो दूर से, प्यार पर गुरूर से, और दोनों ही…
ღღ__ब-मुश्किल थपकियाँ देकर सुलाती है, नींद मुझको “साहब”; पर कुछ ना-समझ ख्वाब हैं उनके, जो बे-वक़्त जगा देते हैं!!…#अक्स
ღღ__मजबूरी में सुनने पड़ते हैं “साहब”, लोगों के ताने अक्सर; . कोई भी शख्स इस जहाँ में, शौक़ से रुसवा नहीं होता!!…#अक्स
ღღ__दुश्वारियाँ लाख सही लेकिन, गुफ्तगू करते रहो “साहब”; . मुसलसल चुप रहने से भी कोई, मसला हल नहीं होता!!…..#अक्स
ღღ__कौन-सी दुनिया में रहते हो, तुम आज-कल “साहब”; . जो सपनों में भी तुम तक, मेरी आवाज़ नहीं जाती!!….#अक्स
ღღ__मजबूरियों का आलम कुछ ऐसा भी होता है “साहब”; . मुसाफिर हूँ फिर भी, अपनी मंजिलें छोड़ आया हूँ!!….#अक्स
ღღ__कह तो सब दूँ “साहब”, पर कभी ख़ामोशी भी पढ़ा करो; . वैसे भी मोहब्बत में, हर बात, कहने की नहीं होती!!……#अक्स
ღღ__गलतफ़हमी में जागते रहे, रात भर उनको जगता देखकर; . भला क्या ज़रूरत थी चाँद को, यूँ रात में निकलने की!!….#अक्स .
ღღ__कल शब तुम्हारी यादों ने “साहब”, क्या दरवाज़े पर दस्तक दी थी? . सुबह को मेरी गली में, कुछ क़दमों के निशान मिले थे आज!!…..#अक्स
ღღ__कल भी आये थे “साहब”, घर तक उनके क़दमों के निशान; . वो मुझसे मिलते तो नहीं लेकिन, मिलने आते ज़रूर हैं!!….#अक्स
ღღ__आपकी मोहब्बत का, इतना तो असर हुआ है “साहब”; . कि अब अक्सर वहाँ होता हूँ, जहाँ होता नहीं हूँ मैं !!….#अक्स
ღღ__गर इजाज़त हो आपकी, तो कुछ ख्वाब देख लूँ “साहब”; . यूँ तो अरसा गुज़र चुका है, आप सुलाने नहीं आये !!….#अक्स
ღღ__यूँ भी कई बार “साहब”, मोहब्बत का सिला मिला मुझे; . कि मेरे ख़त के जवाब में, मेरा ही ख़त मिला मुझे!!…..#अक्स
ღღ__न जाने किस कशिश से कब्र ने, पुकारा था आज “साहब”; . कि ना चाहते हुए भी मुझको, आज ख़ुदकुशी करनी पड़ी!!…#अक्स .
ღღ__गुफ्तगू बेशक नहीं करते, निगाहें फिर भी रखते हैं; . ना जाने प्यार है कैसा, जो कभी बयाँ नहीं होता!!…..#अक्स
ღღ__कहाँ रहते हो तुम भी, आज-कल “साहब”; . बात-बिन-बात, दिल दुखाने नहीं आते!!….#अक्स
ღღ__कई बार खुद को, यूँ भी बहलाया है हमने “साहब”; . कि वो आते तो ज़रूर, मगर फुरसत ही कहाँ होगी!!…..#अक्स
ღღ__कम उम्र में ही ज्यादा, तजुर्बे हो जाने का ये खतरा है “साहब”; . कि फिर वो उम्र तो रहती है, मगर कोई बच्चा नहीं…
ღღ__ये ज़िन्दगी अक्सर, ज़िद से नहीं चलती “साहब”; . कुछ धडकनों की खातिर, दिल से समझौता ज़रूरी है!!….#अक्स
ღღ__ये भी हो सकता है मुझको, फिर से वहम हुआ हो “साहब” . फिर भी पूछ लो ना दिल से, क्यूँ मुझे आवाज़ देता है!!…#अक्स…
. ღღ__ख़ानाबदोश-सी ज़िन्दगी ही, लिखी है नसीब में “साहब”; . कुछ लोगों का इस जहाँ में, अपना ठिकाना नहीं होता!!…..#अक्स .
ღღ__इंतज़ार लम्बा ही सही “साहब”, पर मैं समझौता नहीं करता ; . हमसफ़र वो ही बनेगा मेरा, जिसे भी मेरी ज़रूरत हो!!…..#अक्स
ღღ__सुना है कि तुमको, बहुत ख़याल है मेरा “साहब”; . मैं भी जा रहा हूँ खुद को, तेरे पास छोड़ के आज!!….#अक्स
ღღ__वो तो अहद-ए-वफ़ा की खातिर, तुमसे मिलता रहा हूँ साहब; . वरना गुफ्तगू…..वो भी तुमसे…..क्या मज़ाक करते हो!!….#अक्स .
ღღ__कुछ और इलज़ाम बाकी हों, तो वो भी लगा दो “साहब”; . अभी ना-काफ़ी हैं सितम तुम्हारे, मोहब्बत में, जाँ से जाने को!!…#अक्स .
ღღ__बिन मौसम बरसात यूँ, जला रही है मुझको “साहब”; . जैसे शमाँ जलाती है, अपने परवाने को बुला के पास!!….#अक्स .
. ღღ__रात के सन्नाटे की, कुछ ऐसी आदत लगी है “साहब”; . कि सुबह के शोर में हमसे, अब और जिया नहीं जाता!!….#अक्स .
. ღღ__तेरी पहली नज़र का रंग ही, अब तक उतरा नहीं “साहब”; . हम किससे खेलें होली, हमपे कोई रंग डालता नहीं !!…..#अक्स .
. ღღ__क्यूँ उड़ा-उड़ा सा लगता है, तुम्हारे चेहरे का रंग “साहब”; . सब लोग तो कर रहे हैं, कि रंगों का त्यौहार आया है !!…..#अक्स…
. ღღ__ना कोई उम्मीद, ना तड़प, ना ही इंतज़ार किसी का; . कितना अच्छा होगा वो जहाँ, जहाँ मोहब्बत नहीं होगी !!….अक्स .
. . ღღ__ख़ुदा से माँगते क्यूँकर, भला हम, दुआएँ उनके रोने की; . वो इश्क करने लगें किसी से, सज़ा को इतना ही काफी है!!…..#अक्स…
. ღღ__कल फिर आईने ने मुझसे, ये पूछ ही लिया “साहब”; . कि कहाँ रहते हो आज-कल, और कबसे चेहरा नहीं देखा!!…..#अक्स .
ღღ__प्यार को अशआरों में, बयान करना बड़ा मुश्किल है; . ये तो अच्छा हुआ, निगाहों की हर बात वो समझते रहे!!….#अक्स .
ღღ__सुलगती रहीं तुम्हारी यादें “साहब”, कल फिर से रात भर; . मैं जलता रहा तमाम रात, फिर से आंसुओं की बारिश में !!….#अक्स
ღღ__चलो मिल ही लेते हैं “साहब”, फिर कभी न मिलने को; . यही ख्वाहिश बची है दिल में, इक आखिरी ख्वाहिश की तरह!!….#अक्स .
ღღ__ख़ुद से है, खुदा से है या तुझ से है “साहब”; . जाने क्यूँ, इक नाराज़गी-सी रहती है आज-कल!!….#अक्स .
ღღ__भला लफ़्ज़ों में इंतज़ार को, कहाँ तक लिखे कोई “साहब”; . कभी तुम खुद ही आके देख लो, कि अब थक रहा हूँ मैं !!….#अक्स…
ღღ__भटक रहा था कबसे, मैं इक अनछुए सवाल की मानिन्द; . तेरे खामोश-से जवाब ने “साहब”, लाजवाब कर दिया मुझे!!….#अक्स .
ღღ__सुनो…तुम रुक ही जाओ ना मेरे पास, हमेशा के लिए; . यूँ रोज़ आने-जाने में साहब, वक़्त बहुत लगता है !!……#अक्स .
ღღ__एक बाज़ी गर जीत भी गया, बेईमानी से वो साहब; . महफिल फिर से सज जायेगी, कि वफात बाकी है मेरी !!……#अक्स
ღღ__तुमसे मिलने की तलब, कुछ इस तरह लगी है “साहब”; . जिस तरह से कोई मयकश, मयखाने की तलाश करता है !!…..#अक्स .
ღღ__बहुत खामोश रहते हो, तुम भी आज-कल “साहब”‘; . ख़ुदा से है शिकायत या, खुदी से नाराज़ रहते हो !!…..#अक्स .
ღღ__मोहब्बत थी तुझसे ही, तुझसे ही हर गिला रहा; . उम्र-ए-शब-ए-रोज़ का, बस यही सिल-सिला रहा !!……#अक्स .
ღღ__बिछड़कर देर तक तुझसे, उस दिन मैं सोंचता रहा “साहब”; . मोहब्बत गर ना हुई होती तो, मेरा क्या हुआ होता !!……#अक्स .
ღღ__कभी फुरसत मिले जो ‘साहब’, तो पूरी ये अहद कर दो; . कुछ इस हद तक मुझे चाहो, कि बस “हद” कर दो !!…..#अक्स .
ღღ___बहुत सुना था ऐ इश्क़, तेरे बारे में लोगों से; . देख सांसों की ज़मानत पे, मैं तुझसे मिलने आया हूँ !!…..#अक्स .
ღღ__मैं कह ही नहीं पाता, या तुम समझ नहीं पाते साहब; . कि अक्सर कुछ सवालों के, कोई जवाब नहीं होते !!…..#अक्स .
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