“सज़ा”#2Liner-46
ღღ__सज़ा में एक ही लफ्ज़ है, तेरे हर इक गुनाह का मेरे पास; . कि तुम इतने मासूम हो साहब, जाओ “माफ” किया तुम्हें!!……#अक्स .…
ღღ__सज़ा में एक ही लफ्ज़ है, तेरे हर इक गुनाह का मेरे पास; . कि तुम इतने मासूम हो साहब, जाओ “माफ” किया तुम्हें!!……#अक्स .…
ღღ__मेरे होंठों पे आज भी, कायम है तेरी खुशबू; . इनपे भला शराब का, अब असर कहाँ होगा !!…….#अक्स .
ღღ__कब तलक भटकोगे आखिर, महज़ सुकून की तलाश में; . ये वो शै है “साहब”, जो शायद तेरे नसीब में ही नहीं !!……#अक्स .
ღღ__आरजू मौत की नहीं लेकिन, अब जी के भी क्या करना है; . ज़िन्दगी जी भर के यूँ जी है, कि अब ‘जी’ भर गया…
ღღ__मौत को भी आखिर, गुमराह कब तलक करते; . ज़िन्दगी छोड़ दी हमने, हर लम्हा तुम्हारा करके !!…….#अक्स
ღღ___हाँ ये सच है की हम जागेंगे, उम्र-भर तन्हा तेरे बगैर; . मगर नींद तुझको भी नहीं आएगी, किसी और की बाँहों में!!…..#अक्स .
ღღ___अब ये कैसे कह दूँ “साहब”, कि खुशनसीब नहीं हूँ मैं; . आखिर एक अरसे से उसको अपना, नसीब कहता रहा हूँ मैं !!…. #अक्स
ღღ___कोई ताबीज़ आता हो, तो पहना दो मुझको “साहब”; . तुम्हारे इश्क़ का जूनून, अब सर से उतर रहा है !!…….#अक्स .
ღღ___मैं हँस रहा था जिस लम्हे में, बस अभी-2 तो गुज़रा है; . और लोगों से सुना है, गुज़रा हुआ वापस नहीं आता !!……#अक्स .…
ღღ__तुमने रोका है इनको “साहब”, या हम भूलने लगे हैं अब; . कि अब ख्याल भी तेरे, हमसे मिलने नहीं आते !!………#अक्स
ღღ___कुछ इस तरह से आकर, गम लिपट रहे हैं मुझसे; . कि जैसे हर एक दरिया, समन्दर से जाके मिलता है!!……#अक्स
ღღ__ज़रा देखो तो निकल के “साहब”, अब तक वो आए क्यूँ नहीं; . कहीं ऐसा तो नहीं रस्तों नें, उन्हें गुमराह कर दिया !!……..#अक्स
ღღ__अक्सर भीग उठती हैं “साहब”, पलकें तेरी नज़र-अन्दाज़ी से; . निगाह-ए-इश्क़ पे कोई फ़र्क, ज़माने का नहीं पड़ता !!………#अक्स
ღღ__ना जाने कैसे तुझको, “बे-हद” चाह बैठा “साहब”; . ये दिल जो अक्सर मुझको, मेरी “हद” बताता था !!………#अक्स
ღღ__नज़रों को इंतज़ार की, सजाएँ इतनी भी ना दो “साहब”; . ये बारिशें बिन मौसम की, हमसे अब देखी नहीं जाती !!…….#अक्स
ღღ__आगाज़ तो इस बरस का, लाजवाब हुआ है “साहब”; . बस यही अन्दाज़, मेरे अन्जाम तक बनाये रखना !!……#अक्स . समस्त मित्रों एवं शुभचिंतकों को…
ღღ__दूर आप जा रहे हो ‘साहब’, या फिर ये दिसम्बर; . कोई भी दूर जाये हमसे, ये देखा नहीं जाता !!…….#अक्स
कुछ तो खता तुम्हारी, बेशुमार यादों की है ‘साहब’; . ღღ___यूँ ही बे-सबब कोई, आवारा नहीं होता !!…….#अक्स
ღღ__इक उम्र गुज़ारी है आशिक़ी में, तो जाना है; . कुछ नहीं मिलता, इसमें इक आवारगी के सिवा !!……..#अक्स
ღღ__बाकी हैं चन्द साँसें अब, बेज़ार से दिसम्बर की; . एक नए दिन की तलाश में, पूरा साल ही जा रहा है !!…….#अक्स
ღღ__माफ़ करना पर आज, कोई शायरी नहीं है “साहब”; . कि रिश्तों की ठंड में, लफ्ज़ भी जम गये मेरे !!……..#अक्स
ღღ__मेरे गुनाह-ए-इश्क़ का, कोई फैसला तो सुना दो “साहब” . इस दिल को समझाने में, कुछ वक़्त भी तो लगता है!!…..#अक्स
ღღ__जो तुम कर रहे हो “साहब”, सितम की इन्तहा नहीं तो क्या है; . कि दूर भी जा रहे हो मुझसे, वो भी ज़रा-ज़रा कर…
ღღ__भला और क्या दूँ तुझको, सुबूत अपनी वफ़ा का मैं; . कि ख़ुद का भी ना हुआ हूँ, जबसे तेरा हुआ हूँ मैं !!…….#अक्स
ღღ__शायद ये आँखें मूँद लेने का, सही वक़्त है “साहब”; . कि रोज़ ख्वाहिशों का मरना, हमसे अब देखा नहीं जाता !!……#अक्स . www.facebook.com/अन्दाज़-ए-बयाँ-with-AkS-Bhadouria-256545234487108/
ये सर्दियों का मौसम, और ये तन्हाईयों का आलम; . कहीं जान ही ना ले-ले, इनसे मिलके बेबसी मेरी !!……#अक्स . www.facebook.com/अन्दाज़-ए-बयाँ-with-AkS-Bhadouria-256545234487108/
ღღ__इस कदर भी याद, ना आया करो “साहब”; . मेरी खुशियों की नींद में, खलल पड़ता है !!…….#अक्स . www.facebook.com/अन्दाज़-ए-बयाँ-with-AkS-Bhadouria-256545234487108/
ღღ___तुझको पाने की कोशिश भी, तू जो कह दे तो ना करूँ; . पर पाने की आरजू रखना, तो कोई गुनाह नहीं !!………#अक्स
ღღ__कुछ इस तरह से लिक्खा है, उस ख़ुदा ने मेरा नसीब; . कि मैं तो सबका हो जाऊंगा “साहब”, कोई मेरा नहीं होगा !!…….#अक्स
ღღ___ज़िन्दगी तो कटती जा रही है “साहब”, इन्तजार की कैंची से; . और सिलसिला-ए-इन्तजार है, कि कटता ही नहीं कभी !!…….#अक्स
ღღ__इक परिन्दा हो के भी, अब उड़ नहीं सकता; . कि मेरे साये ने ही मेरा, मेरा आसमाँ चुरा लिया !!……..#अक्स
क्या होगा. . . . . .❤ कभी सोचा है, कि जब तुझको, मेरी याद आई तो क्या होगा; ना हम होंगे, ना तुम होगे,…
उनकी उलझी हुई जुल्फ़ें जब मेरे शानों पे बिखरती है सुलझ सी जाती है मेरी उलझी हुई जिंदगी
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