आज़ाद हिंद

सम्पूर्ण ब्रहमण्ड भीतर विराजत  ! अनेक खंड , चंद्रमा तरेगन  !! सूर्य व अनेक उपागम् , ! किंतु मुख्य नॅव खण्डो  !!   मे पृथ्वी…

बाल श्रमिक

मंदिर में पानी भरती वह बच्ची चूल्हे चौके में छुकती छुटकी भट्टी में रोटी सा तपता रामू ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू…

~~”मजदुर”~~

~~”मजदुर”~~ ..वह ‘सृजनकर्ता’ है ‘दुख’ सहके भी ‘सुख’ बांटता है.. ..वो ‘मजे’ में ‘चूर’ हैं, बस इसलिए ‘मग़रूर’ हैं.. ..हम ‘मजे’ से ‘दूर’ हैं, बस…

आखिरी मुंसिफ

मैं भी देश के सम्मान को सबसे ऊपर समझता हूँ तो क्या हुआ कि साहित्यकारों की निंदा पर जुदा राय रखता हूँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता…

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