मजदूर
गरीबी में पला बड़ा,धूप छाँव रहा खड़ा,
मजबूरी में पनपा,किस्मत का मारा है ।
मेहनत पर जीता रहा,हर गम पीता रहा,
देख कभी लेता नही,किसी का सहारा है ।
दो समय के खाने को,लेता नही बहाने वो,
अपने तन की पीड़ा,खुद ही नाकारा है ।
दर्द उसे भी होता है,मन ही मन रोता है,
मजदूरी के अलावा, पर नही चारा है ।।
Sundae kavya srajan 🙂
हार्दिक आभार
bahut khoob..umda!!
हार्दिक आभार