गुम गया इंसान
जिंदगी की होड़ में कहीं,
गुम गया इंसान,
कभी जमीं को खोदता,
तो पाताल की सोचता,
फिर आसमाँ को रौंदता,
चाँद-तारे नक्षत्रों में खुद को ढूँढता
थक हार गया इंसान,
जिंदगी की होड़ में कहीं,
गुम गया इंसान ।
मृग तृषित इंसान,
अपनी पहचान ढ़ूँढता,
मिसाईलो को दागता,
विस्फोटक बना कर चौंकता,
ताकत अपनी जताने को,
सत्ता अपनी जमाने को,
सारी ताकत झोंकता,
विक्षिप्त हुआ इंसान,
जिंदगी की होड़ में,
कहीं गुम गया इंसान ।
अगर-मगर से झूझता,
डगर-डगर है घूमता,
लोक-परलोक से जोड़ता,
आपस में सिर फोड़ता,
खुद से हो अंजान,
अभिशिप्त हुआ इंसान,
जिंदगी की होड़ में कहीं,
गुम गया इंसान ।।
लाज़वाब
bahut sundar ritu ji
Thanks Divya
Asm
Thanks Dev
Thanks ushesh
laajwab likhaa aapne ritu ji badhai ho aapko khubsurt poem ke liey
Thanks Pura ji