अदा-ऐ-इश्क़
बस एक यही अदा हमको उसकी भाती नहीं है
के बुलाने के बाबजूद भी वो मिलने आती नहीं है,
मोहोब्बत है उसको हमसे हम जानते है यूँ तो
बस अपने मुँह से वो हमको कभी ये बताती नहीं है,
बस एक यही अदा हमको उसकी भाती नहीं है
के बुलाने के बाबजूद भी वो मिलने आती नहीं है,
तड़पती है हमको ऐसे जैसे हम कोई गैर हो
थोड़ा सा भी हमको वो सुकून दिलाती नहीं है,
बस एक यही अदा हमको उसकी भाती नहीं है
के बुलाने के बाबजूद भी वो मिलने आती नहीं है,
हक़ है उसका हम पर पूरा जैसे चाँद का सितारों पर
मगर कभी वो अपना हक़ हम पर जताती नहीं है,
बस एक यही अदा हमको उसकी भाती नहीं है
के बुलाने के बाबजूद भी वो मिलने आती नहीं है,
जरूर दर है उसके दिल मैं भी शायद
इशारा तो करती है, मगर कभी बुलाती नहीं है
बस एक यही अदा हमको उसकी भाती नहीं है
के बुलाने के बाबजूद भी वो मिलने आती नहीं है………………..!!
वाह
सुन्दर रचना